۲ آذر ۱۴۰۳ |۲۰ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 22, 2024
समाचार कोड: 383120
6 अगस्त 2022 - 16:21
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हौज़ा / हुसैन’ की कुर्बानी ने लोगों को जागृत कर दिया, और केवल सच्चे लोगों ने यज़ीद के शासन का तख्ता उलट दिया । ‘हुसैन’ के सत्याग्रह से दुनिया का जनसमुदाय भी प्रभावित हुआ, न्याय और स्वतंत्रता के लिए हर जगह क्रांती आयी । लोकमान्य तिलकजी ने कहा - ‘हुसैन विश्व के पहले सत्याग्रही हैं !’

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी ! “है कोई जो मेरा साथ दे ?” ये किसी एक धर्म-संप्रदाय के समूह से संबोधन नहीं हो रहा है। ना किसी वर्ण-वर्ग-जाति के लोगों से, न किसी भाषा के विद्वानों से और न किसी राष्ट्र के निवासियों को पुकारा जा रहा है, बल्कि समस्त मानव समूदाय को इमाम ‘हुसैन’ यह संबोधन करबला के सत्याग्रह से कर रहे हैं। सत्याग्रह में ‘हुसैन’ के सारे साथी और परिवार के सदस्य, जालिम शासक‘यज़ीद’ की सेना का प्रतिकार(संघर्ष) करते शहीद हो गए हैं। अब,‘हुसैन’ अकेले प्रतिकार कर रहे हैं, ऐसे समय ‘हुसैन’ का यह संबोधन करने का उद्देश्य मानव जीवन के लिए लाभदायक बन सके तो आश्चर्य नही होगा।

क्या ‘हुसैन’ स्वरक्षा के लिए साथ देने पुकार रहे थे ? यदि ऐसा होता तो सत्याग्रह समेटकर, समर्पण कर देने का पर्याय ‘हुसैन’ के पास था । किंतु ‘हुसैन’ का समर्पण (Surrender) नहीं करना, सत्याग्रह जारी (Continue) रखना और जालिम शासक की सेना का प्रतिकार अंत तक करते रहना, इस बात का प्रमाण है कि ‘हुसैन’ स्वरक्षा-जान बचाने के लिए संबोधन नहीं कर रहे थे । इस संबोधन का उद्देश, इमाम ‘हुसैन’ के सत्याग्रह-Movement से जानने का प्रयास करते हैं ।

“है कोई जो मेरा साथ दे ? ‘हुसैन’ का मानवजाती को संबोधन करना, ये ‘हुसैन’ का व्यक्तित्व बिनसंप्रदायवादी होने का प्रमाण है । ‘हुसैन’ के अभियान का उद्देश्य बुराइयों को रोकना और अच्छाइयों को प्रेरित करना था, जिससे किसी धर्म-संप्रदाय को आपत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि अच्छाइयां किसी एक धर्म संप्रदाय की मिल्कियत नहीं होती और सभी धर्म संप्रदाय बुराइयों को अवैध समझते हैं । स्मरण रहे ! धर्म भी वहीं से शुरू होता है जहां से ‘सत्य’ की अनुभूति (Realise) होती है । ‘झूठ’ सभी धर्म में वर्जित-हराम-प्रतिबंधित है । इसी कारण ‘झूठा शासक’ झूठ को सच बनाकर (अर्धसत्य) बोलने का प्रयास करता है, तो लोग न्याय से वंचित रहते हैं, जुल्म होता है और मानवीय मूल्यों की पायमली होती है । आज से 1383 वर्ष पूर्व अरब साम्राज्य का शासक ‘यज़ीद’ ने झूठ के बलबूते पर स्वयं को मुस्लिमों का तथाकथित खलीफा घोषित किया और झूठे परिबलों को प्रोत्साहित किया, ‘सच’ की उपेक्षा होती रही, लोग न्याय से वंचित रहने के कारण मानवता की धज्जियाँ उड़ रही थी । ऐसे समय मानव हक्क की रक्षा के लिये यज़ीद का सामना/विद्रोह करने की जिम्मेदारी लोगों की बनती थी, किंतु लोग यज़ीद के भय और लालच के कारण मौन/चुपकीदी रखे हुए थे । ऐसी स्थिती में ‘हुसैन’ ने अपना दायित्व (Responsibility) निभाने के लिये यज़ीद का सामना करने सत्याग्रह किया । ‘हुसैन’ के 72 सच्चे साथी सत्त्याग्रह करते शहीद हो गये, अब ‘हुसैन’ अकेले प्रतिकार कर रहे थे, उस वक्त ‘हुसैन’ ‘है कोई कहकर जो भी सच्चा है’ उन को साथ देने के लिये पुकार रहे थे । जो जो सच्चें हैं उनको साथ देने अर्थात करबला के सत्याग्रह- को जारी (Continue) रखने के लिये ‘हुसैन’ संबोध रहे थे। अब, सच्चों की जिम्मेदारी है की जब भी, जहां भी जुल्म हो रहा हो तो जनसमुदाय में न्याय प्रस्थापित करने, झुठ और जुल्म का सामना करने के लिए इमाम ‘हुसैन’ के सत्याग्रह का आदर्श रखे ।

जालिम सेना का प्रतिकार करते ‘हुसैन’ शहीद हो गये। ‘हुसैन’ की कुर्बानी ने लोगों को जागृत कर दिया, और केवल सच्चे लोगों ने यज़ीद के शासन का तख्ता उलट दिया । ‘हुसैन’ के सत्याग्रह से दुनिया का जनसमुदाय भी प्रभावित हुआ, न्याय और स्वतंत्रता के लिए हर जगह क्रांती आयी । लोकमान्य तिलकजी ने कहा - ‘हुसैन विश्व के पहले सत्याग्रही हैं !’

1383 वर्ष पूर्व ‘हुसैन’ के संबोधन का आज वर्तमान से क्या संबंध ? यह प्रश्न उपस्थित हो सकता है । इस प्रश्न का उत्तर भी एक प्रश्न में है, क्या आज कोई ‘सच्चा’ नहीं है ? यदि आज भी सच्चे लोग हैं, तो ‘हुसैन’ का संबोधन आज भी वर्तमान से संबंधित है । मनुष्य प्रकृति (Nature) में खयालात (Thinking), एहसासात (Feeling) और जज्बात (Emotions) कभी नहीं बदलते । फिलोसॉफर ‘प्लेटो’, वैज्ञानिक ‘न्यूटन’ वगैरा के खयालात जिस दिशा में कार्यरत थे, उसी दिशा में आज भी हैं। फिरौन-कंस-दुर्योधन-यज़ीद जैसो की मक्कारी-धूर्तता आज भी लोगों मे पायी जाती है । मनुष्य के एहसासात और जज्बात भी समय अनुसार नहीं बदलते, जैसे खुशी-रंज-मोहब्बत-नफरत जिस तरह माजी में थी उसी तरह आज भी है । अब, करबला की घटना (हुसैन के सत्याग्रह) पर दृष्टि-नजर करें । करबला में सत्य-असत्य का टकराव था, क्या वही टकराव आज नहीं है ? जो खयालात करबला में थे, क्या आज वह बदल गए हैं ? जो खयालात, एहसासात और जज्बात माज़ी में थे, क्या वह आज मनुष्य प्रकृति में नहीं है? यदि है, तो ‘हुसैन’ का संबोधन “है कोई जो मेरा साथ दे ? आज वर्तमान के लिए भी उतना ही संबंधित है जितना 1383 वर्ष पूर्व था । आज भी हुसैनी विचारधारा (सच्चाई) और यज़ीदी धूर्तता (झूठ) का टकराव किसी न किसी रूप में अस्तित्व में है, इस तनाव (डीींशीी) से आजादी के लिए हर वक्त इमाम ‘हुसैन’ के सत्याग्रह-Movement पर (करबला की घटना पर) जन समुदाय की दृष्टी रहे यह अनिवार्य है । हुसैन का सत्याग्रह एक बेहता हुवा सागर है, ‘झूठ’ की चट्टानों से सागर अपना मार्ग (रास्ता) नहीं बदलता, बल्की सागर अधिक ऊंचा हो जाता है और चट्टानों को डुबो देता है ।

संपादक : सत्य विचारधारा मंच,

‘गदीर’ खोजा कॉलनी, सांगली.

मोबा. +91 94 22 74 22 78

‘हुसैनी क्रांती को जीवन मे उतारे,

ज्ञानी एवं जिम्मेदार नागरिक बने।

अंक : 38 वा

वितरण कर्ता : मुस्लिम शिया इस्नाअशरी, खोजा समाज,

खोजा कॉलनी (खुमैनी बाग), सांगली-416 416. महाराष्ट्र,

10 मोहर्रम हिजरी 1444, मंगलवार, तारीख 9.8.2022

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